इस संसार में हर कोई व्यक्ति यह चाहता है की उसकी जोड़ी भगवान शिव और माता पार्वती के समान हो | माता पार्वती को शक्ति की देवी और भगवान शिव को मृत्यु का देवता कहा जाता है | सभी लोग जानते है की माता पार्वती भगवान शिव की दूसरी पत्नी है | शिवजी की पहली पत्नी सती थी, जिहोने अपने पिता के अपमान को सहन ना कर पाने के कारण आत्महत्या कर ली थी | जिसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती से दूसरा विवाह कर लिया था | लेकिन क्या आप जानते है की यह विवाह कहाँ हुआ था ? आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे है |
यह स्थान उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में है | जिस जगह माता पार्वती और भगवान शिव ने विवाह किया था, वहां आज एक मंदिर बना हुआ है इसे त्रियुगी नारायण का मंदिर कहा जाता है | ऐसा माना जाता है कोई भी यही वह स्थल है जहाँ भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था | जिस हवन कुंड के सात फेरे लेकर भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था | उस कुंड की अग्नि आज भी जल रही है |
पौराणिक कथाओ के अनुसार देवी पार्वती हिमालय की पुत्री थी | पर्वतराज की पुत्री होने के कारण उनका नाम पार्वती पड़ गया | ऐसा माना जाता है की जब भगवान शिव और माता-पार्वती का विवाह हुआ तो सभी देवी-देवता, नाग, असुर, गन्धर्व और किन्नर उपस्थित हुए | लेकिन इस विवाह का प्रमुख साक्षी भगवान विष्णु को बनाया गया | जिस कारण यहाँ विष्णु जी का मंदिर भी है |
हिमालय की घाटियों मे स्थित यह मंदिर दूर से देखने पर काफी सुन्दर लगता है | इस मंदिर को देखने के लिए दूर-दूर से काफी पर्यटक आते है और हिमालय की खूबसूरती का आनंद लेते है | भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का यह प्रसिद्ध स्थल ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है |
इस मंदिर में जाने के काफी रास्ते है | लेकिन यदि आप पैदल जाना चाहे है तो आपको कम से कम 6 से 7 किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा | इसलिए आवश्यक है की यहाँ यात्रा करने से पहले आप अपने साथ पानी लेकर जावे | यहाँ देखने के लिए बहुत कुछ है | यहाँ आप ब्रह्मकुंड, विष्णुकुंड और रुद्रकुंड के दर्शन कर सकते है |